हिन्दी कहानी
पश्चात् भारतेन्दु की एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न' तथा राधाचरण गोस्वामी की 'यमलोक की यात्रा' प्रकाश में आयी लेकिन विद्वानों ने इनमें भी
" किरन अभी भोरी थी। दुनिया में जिसे भोरी कहते हैं, वैसी भोरी नहीं। उसे वन के राधिका रमण प्रसाद सिंह
शांति ने ऊबकर काग़ज़ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उठकर अनमनी-सी कमरे में घूमने लगी। उसका मन स्वस्थ नहीं था, लिखते-लिखते उसका ध्यान बँट जाता था। केवल चार पंक्तियाँ वह लिखना चाहती थी; पर वह जो कुछ लिखना चाहती थी, उससे लिखा न जाता था। भावावेश में कुछ-का-कुछ उपेन्द्रनाथ अश्क
विघटन इत्यादि का वर्णन विस्तार से हुआ है। निर्मल वर्मा के पराये शहर में' 'अन्तर' 'परिन्दे', 'लवर्स', 'लन्दन की रात', मोहन राकेश की 'वासना की छाया', 'काला रोजगार', मिस्टर भाटिया 'मलवे का मालिक', राजेन्द्र यादव
की ‘शव यात्रा', 'दूसरे के पैर', महीपसिंह की 'काला बाय, गोरा बाय', आदि कहानियाँ
विवाद है। हिन्दी गद्य की प्रारम्भिक अवधि में मुंशी इंशा अल्ला खाँ ने 'उदय भान चरित्र' या रानी केतकी की
गुसाईं का मन चिलम में भी नहीं लगा। मिहल की छाँह से उठकर वह फिर एक बार घट (पनचक्की) के अंदर आया। अभी खप्पर में एक-चौथाई से भी अधिक गेहूँ शेष था। खप्पर में हाथ डालकर उसने व्यर्थ ही उलटा-पलटा और चक्की के पाटों के वृत्त में फैले हुए आटे को झाड़कर एक ढेर शेखर जोशी
इन्हें विशेष रूप से सम्मान दिया वे इस प्रकार हैं-
आँखों को खोल देने वाली जीवन में समय के महत्व की कहानी
को कर देते है। लेकिन वर्तमान की कहानियों के पात्र अपने समय और परिस्थितियों के
उनमें जैनेन्द्रकुमार का प्रमुख स्थान है। इनका ध्यान समाज के विस्तार की अपेक्षा
युग की आरम्भिक कहानियाँ प्रायः आदर्श-वादी होती थी जिनमें भावुकता के साथ किसी
" किरन अभी भोरी थी। दुनिया में जिसे भोरी कहते हैं, वैसी भोरी नहीं। उसे वन के राधिका रमण प्रसाद सिंह
पूर्व भी भारत वर्ष में कहानी का अस्तित्व था, लेकिन अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् हिन्दी कहानी जिस रूप